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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

8. मुक्ति 
यह कहानी एक ही थाल के चट्टे बट्टे मुहावरे पर आधारित है । 
रधिया गाय का दूध निकाल रही थी । दूध निकालते निकालते वह कोई भजन गुनगुना लेती थी तो आज भी वह एक भजन "मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है" गुनगुना रही थी । तभी उसे लगा कि कोई उसे पुकार रहा है । वह भजन गुनगुनाना बंद कर आवाज की टोह लेने लगी । इतने में उसे सुनाई पड़ा "बहरी है क्या ? मैं कब से चिल्ला रहा हूं , सुनती ही नहीं है" ये उसके पति हरिया की आवाज थी 
"मुझसे कुछ कह रहे हो क्या" ? रधिया ने ऊंची आवाज में कहा 
"तुझसे ही तो कहूंगा , और कोई दूसरी लुगाई थोड़ी है घर में जिससे कुछ कह सकूं ? मुझे खेतों पर जाने में देर हो रही है और मेरी लाठी मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही है" । हरिया चीखते हुए बोला । 
"मैं दूध निकाल कर आती हूं" रधिया ने शांत स्वर में जवाब दिया । 
"तब तक मैं महारानी का इंतजार करूंगा क्या" ? हरिया बिगड़ैल सांड की तरह बिफर पड़ा । 

रधिया दूध निकालना छोड़कर घर के अंदर गई और एक कोने में रखी लाठी हरिया को पकड़ाते हुए बोली 
"आपके सामने ही तो रखी थी ये लाठी" 
"अच्छा ! तू मुझे अंधा बता रही है क्या" ? हरिया उस पर झपटते हुए बोला 
"मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा है । आप नाहक ही मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं" रधिया पुन: दूध निकालने के लिये वापस मुड़ गई । 
"हां हां, मैं ही झूठ बोल रहा हूं । तू तो सती सावित्री है" ये कहते हुए हरिया ने उसके बाल पकड़ लिये और एक जोर का धक्का दे मारा । रधिया को इस अप्रत्याशित हमले का अंदेशा नहीं था इसलिए वह असावधान थी । इस धक्के के कारण उसका सिर सामने की दीवार से टकरा गया और उसके सिर से खून बहने लगा । वह चीत्कार कर उठी । उसकी चीत्कार सुन हरिया ने एक जोरदार ठहाका लगाया और लाठी लेकर खेतों के लिए निकल गया । 

रधिया अपनी दयनीय स्थिति पर रो पड़ी । हरिया का यह रोज का काम था । जैसे उसे रधिया को मारने पीटने में आनंद आता हो । वह गाहे बगाहे रधिया को बिना बात ही मारता पीटता रहता और आनंदित होता रहता था । बेचारी रधिया खून के आंसू पीकर रह जाती थी । अपनी पीड़ा का सार्वजनिक इजहार भी करना नहीं चाहती थी वह । इससे उसके पति की बदनामी होने की संभावना थी । उसके पति की बदनामी होगी तो उसकी भी बदनामी होगी ना ? वह ऐसा सोचकर रह जाती थी । रधिया चुपचाप दूध निकालने चली गई । 

दूध निकाल कर वह पानी लाने के लिए कुंए पर गई तब वहां पर बहुत सी औरतें कुंए से पानी निकाल रही थी । रधिया के सिर की चोट देखकर सब औरतें उस पर पिल पड़ीं 
"अरे रधिया, ये कैसी चोट है तेरे सिर पर ? कहीं गिर गई थी क्या" ? किसनी ताई बोली 
"गिरेगी क्यों ? कोई अंधी थोड़ी है मेरी बहू ? लगता है कि दुष्ट हरिया ने इसका सिर दीवार पे मार दिया है । राक्षस कहीं का" ! सम्पत्ति काकी बोल पड़ी । 
बाकी औरतें खुसुर-पुसुर करने लगीं । कहने लगीं "हम औरतों के भाग्य में तो बस पिटना ही लिखा है । सारे मर्द एक जैसे होते हैं । निष्ठुर, निर्दयी, पत्थर दिल , बेदर्द । सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं । रधिया का मरद कोई अलग तो है नहीं । उसने भी वही काम किया है जो दूसरे मरद करते हैं" ।

इससे पहले कि बाकी औरतें कुछ और उल्टा पुल्टा बोलें , रधिया धीमी आवाज में बोली "ऐसा कुछ नहीं है । रात को अंधेरे में मैं घर की देहरी से टकराकर गिर पड़ी थी , उस कारण यह चोट लगी है" । रधिया की जबान इस झूठ का साथ नहीं दे पा रही थी । बाकी औरतों के चेहरों पर अविश्वास साफ साफ झलक रहा था । रधिया चुपचाप पानी भरने लगी । 

घर आकर उसने मटका, घड़ा "पंडेरी" पर रख दिया और बाल्टी स्नानागार में रख दी । वह नहाने की तैयारी कर ही रही थी कि उसे पड़ोस के मकान से चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनाई दीं । उसने उन आवाजों को ध्यान से सुना तो पता चला कि ये आवाजें उसकी पड़ोसन और सखी सुखिया की थीं । सुखिया उसके बगल के मकान में ही रहती थी । लगता था कि उसका मरद उसे मार रहा था और वह जोर जोर से चिल्ला रही थी । यह उसका रोज का ही काम था । सुखिया की चीखें बहुत तेज हो गई थी । रधिया से उसकी पिटाई और उसका रोना सहन नहीं हुआ तो वह सुखिया के घर चली गई । 

रधिया को देखकर सुखिया और जोर से रोने चिल्लाने लगी । सुहानुभूति पाकर रुलाई और ज्यादा पिघल जाती है इसलिए वह आंखों, कानों और नाक द्वारा निकल पड़ती है । रधिया ने उसके पति को टोकते हुए कहा "और कितना मारोगे इसे लाल जी ? आज जान ही ले लोगे क्या ? वैसे तो अच्छा ही है यूं रोज रोज मरने के बजाय एक दिन मर जाना" । रधिया सुखिया और उसके पति पेमा के बीच आ गई । मजबूरन पेमा को सुखिया की पिटाई रोकनी पड़ी पर रधिया के हस्तक्षेप से उसे बहुत बुरा लगा था । 

रधिया जल्दी जल्दी अपने घर आई और नहा धोकर पूजा पाठ करने लगी । पूजा पाठ में उसका मन नहीं लग रहा था । उसे चिंता थी तो अपने पति हरिया की । सुखिया और पेमा के झगड़े में उसे खाना बनाने में देर हो गई थी । हरिया उसका इंतजार कर रहा होगा । उसने जल्दी जल्दी पूजा खत्म की और खाना बनाने बैठ गई । जल्दी जल्दी में वह रोटी और सब्जी में नमक डालना भूल गई थी । खाना बनाकर चौका संभालकर उसने हरिया और अपने लिये खाना एक पोटली में बांध लिया और तेज तेज कदमों से अपने खेतों की ओर चल दी । हरिया एक बबूल के पेड़ के नीचे बैठकर उसी की राह देख रहा था । गुस्से से उसका मुंह लाल हो रहा था । 

रधिया चुपचाप वहां पर बैठकर पोटली में से खाना निकाल कर एक पत्तल में रखने लगी । उसने अभी केवल एक पत्तल ही लगाई थी । हरिया  के खाने के बाद ही वह खाना खाती थी । हरिया ने पत्तल में से एक ग्रास तोड़कर सब्जी से लगाकर जैसे ही मुंह में डाला, उसने तुरंत थूक दिया 
"ये क्या बनाया है तूने ? एकदम फीकाफट्ट ! खाना भी बनाना नहीं आता है क्या" ? हरिया क्रोध से गरज उठा । उसने पत्तल समेटी और रधिया के मुंह पर दे मारी । निशाना चूकने के कारण पत्तल रधिया के बगल में से तीर की तरह निकल गई । इससे हरिया को और गुस्सा आ गया । उसने सारा खाना फेंक दिया । 

बेचारी रधिया रुंआसी हो गई । कितनी मेहनत और प्रेम से उसने खाना बनाया था । बस, नमक डालना ही भूल गई थी वह । "नमक का क्या है, सब्जी में ऊपर से भी डाला जा सकता है । यह इतनी बड़ी गलती तो नहीं है कि सारा खाना ही फेंक दिया जाये ? मगर यहां तो मारने पीटने के अलावा और कुछ आता ही नहीं है मरद जात को । पता नहीं, इतनी अकड़ किस बात की रखते हैं ये मर्द लोग" ? रधिया मन ही मन कुढ़ कर रह गई थी । 

रधिया भूखी प्यासी तो थी ही , इस घटना से वह और दुखी हो गई थी । उसने चुपचाप फेंका हुआ खाना समेटा और उसे गाय को खिलाने चली गई और वहीं से ही वह बिना कुछ बोले अपने घर वापस आ गई । 

उधर सुखिया के पति पेमा को रधिया का बीच बचाव करना बहुत अखरा था । उनके घर के मामलों में किसी और का हस्तक्षेप पेमा को मंजूर नहीं था । सुखिया उसकी पत्नी है और अपनी पत्नी को मारने पीटने का उसके पास अनुज्ञा पत्र है । फिर रधिया को बीच में पड़ने की काया आवश्यकता थी ? इसका दंड तो उसे मिलना ही चाहिए जिससे आगे वह ऐसा दुस्साहस ना कर सके । उसने रधिया रूपी बीमारी का इलाज करने का निश्चय कर लिया । वह हरिया से मिलने उसके खेत पर आ गया और हरिया से बोला 
"आजकल रधिया भाभी का मन घर में नहीं लगता है क्या " ? 
"क्यों  ? क्या हुआ" ? 
"हुआ तो कुछ नहीं है मगर वह अपने घर में कम और पड़ोसियों के घरों में ज्यादा रहती हैं आजकल" । 
"क्या मतलब है तुम्हारा" ? अबकी बार हरिया को तैश आ गया था । 
"वे कभी किसी के घर में घुस जाती हैं, कभी किसी और के घर में । आज सुबह सुबह मेरे ही घर में आ गई थीं । मैंने उन्हें कहा भी कि अभी सुखिया नहीं है घर में फिर कभी आ जाना , पर वे मानी ही नहीं । मुझे तो डर लगा कि कहीं वे मेरे साथ कुछ ऐसा वैसा ना कर दें इसलिए मैं तो डर के मारे घर से निकलकर बाहर आ गया" । पेमा ने शक का बीज हरिया के दिल रूपी खेत में बो दिया था । अब पेमा का काम पूरा हो चुका था इसलिए वह वहां से चल दिया । 

हरिया सोचता ही रह गया । रधिया इतनी बदचलन है ,उसे पता ही नहीं था ! आज उसकी अच्छी खबर लूंगा घर चलकर । हरिया सोच रहा था । 

रधिया सोच रही थी कि आज हरिया सुबह से ही भूखा है । उसने कुछ भी नहीं खाया है । दिन भर हाड़ तोड़ काम करता है । अगर वह दिनभर भूखा रहेगा तो कैसे काम चलेगा ? उसे भी सुखिया के फटे में टांग फंसाने की कहां जरूरत थी । किस घर में लड़ाई नहीं होती है ? जब हरिया उसे मारता है तब कोई बचाने आता है क्या ? यह तो आम बात है । कुम्हार का गुस्सा तो गधे पर ही उतरता है । ऐसे ही मरद का गुस्सा औरत पर उतरता है । यह तो दुनिया की रीत है । सारे मर्द एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं , हरिया और पेमा कोई अलग थोड़ी ना हैं । अगर वह सुखिया के झगड़े में नहीं पड़ती तो उससे नमक नहीं डालने की भूल नहीं होती । उसकी एक भूल से हरिया दिन भर भूख से तड़प रहा है । हरिया का दुख सोच सोचकर उसका कलेजा कांप उठा । दिल भर आया और आंखों से रिमझिम बरसात होने लगी । रोने से उसका मन हल्का हो गया था और उसके मन का मैल भी बाहर निकल आया था ।  इसलिए अब उसका चेहरा और निखर आया था । 

उसने खाना बनाया और हाथ मुंह धोकर शीशे के सामने आ गई । लिपस्टिक लगाये कितने दिन हो गये थे उसे, कुछ याद नहीं । वह अपने पतले पतले अधरों पर लाल लाल लिपस्टिक लगाने लगी । उसने अपने घने , लंबे और काले काले बाल खोल लिये और उनमें सुगंधित तेल लगाने लगी । करीने से बाल संवार कर उसने उन्हें खुला ही छोड़ दिया था और एक साइड में कर लिया । माथे पर एक छोटी सी बिंदी लगा ली जैसे आसमान में सूरज देवता निकल आये हों । आंखों में काजल डाल लिया । उसने गौर से शीशे में देखा । कितनी बड़ी बड़ी आंखें थी उसकी , सागर से भी गहरी । पर हरिया को इनमें डूबने की फुरसत कहां थी ? उसे तो मारने में ही आनंद आता था , आंखों में डूबना उसने सीखा ही नहीं था । उसका ध्यान अपनी मांग की ओर गया । "अरे, सिंदूर तो लगाया ही नहीं था ! बिना सिंदूर के मांग कैसी सूनी सूनी सी लगती है न ? एक विधवा की तरह" ! उसने घबराकर मांग में सिंदूर भर लिया । मांग में सिंदूर भरने के बाद वह किसी अप्सरा की तरह लग रही थी । उसने सोचा कि आज वह हरिया को "खुश" करके ही  मानेगी । 

अंधेरा हो गया था पर हरिया नहीं आया था । उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा । कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है कहीं ? इतनी देर तो कभी नहीं लगाई इन्होंने ? रात में तो काम भी नहीं हो सकता है । फिर अभी तक आये क्यों नहीं ? वह दरवाजे पर खड़ी खड़ी हरिया की बाट जोहने लगी । 

अचानक एक आवाज से उसकी तंद्रा भंग हो गई  । 
"आज मैं उसे छोडूंगा नहीं । बदचलन कहीं की ! मेरी इज्जत मिट्टी में मिलाकर रख दी है साली ने" । लड़खड़ाते कदमों से हरिया को आते देख लिया था रधिया ने । वह दौड़कर उसे सहारा देने लगी 
"चल दूर हट कुलटा कहीं की ! मुझे छूना नहीं । कुलच्छनी कहीं की ! पापन औरत ! मुझे छूकर अपने जैसा पापी बनाना चाहती है क्या" ?
रधिया बिना कुछ बोले उसे सहारा देकर घर के अंदर ले आई । हरिया को देखकर कोई भी कह सकता था कि उसने जमकर दारू पी है । कुछ "जहर" तो पेमा ने पिला दिया था । उस "जहर" का असर इतना था कि हरिया दिन भर छटपटाता ही रहा था । उस "जहर" की काट करने के लिए उसने मयखाने में जाकर ये "जहर" पी लिया था । अब दोनों "जहरों" का असर कहर ढाने वाला था । 

हरिया ने रधिया को सजे संवरे देखा तो उसे और तैश आ गया । "किसके लिये सजी संवरी है तू बदचलन औरत ? पूरे गांव में तो तूने एक भी मरद छोड़ा नहीं है ।  अब और किसके लिये निखारा है तूने अपना ये रूप रंग" ? 

इन तीखे शब्दों को सुनकर रधिया दंग रह गई । आज से पहले हरिया ने उसे बदचलन , कुलटा और कुलच्छनी स्त्री नहीं कहा था । वह मारता पीटता तो था पर उसके चरित्र पर उसने कभी हमला नहीं किया था । उसके मारने पीटने से उसका शरीर घायल होता था । पर आज तो मन घायल हुआ है उसका ! वो मन जिसमें हरिया की ही मूरत बसी हुई है । आज उसे वह मूरत खंड खंड होती दिख रही थी । क्या यही दिन देखना बाकी था ? एक पतिव्रता स्त्री के लिए इससे ज्यादा बुरा और क्या हो सकता है जब उसका पति ही उसे बदचलन, कुलटा और कुलच्छनी नार कह दे । रधिया शर्म से धरती में गढ़ जाना चाहती थी । अब जीने का क्या फायदा ? हरिया ने उसे ऐसा कौन सा सुख दे दिया था जिससे वह जिंदा रह सके । आज तो उसने उसके चरित्र को ही तार तार कर दिया था । अब तक वह इस चरित्र के बल पर ही तो जिंदा थी । पर आज तो उसका सब कुछ लुट गया था । उसने ईश्वर की ओर आसमान में अपने दोनों हाथ उठा दिये । उसकी आत्मा से शब्द स्वत: निकलने लगे 
"प्रभो, इस अभागिन ने पता नहीं कौन से पाप किये हैं जिनकी सजा आपने इसे दी है । एक पतिव्रता स्त्री को जिंदा रहने के लिए और कुछ नहीं चाहिए । वह अपने चरित्र के बल पर जिंदा रहती है । आज तो मेरा चरित्र भी लुट गया है । अब मैं जी कर क्या करूंगी प्रभो ! मुझे अपने चरणों में जगह दे दो प्रभो ! अब मुझे जीने की अभिलाषा नहीं है स्वामी । अब मुझे मुक्ति दे दो स्वामी" । उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे । 

ईश्वर को भी शायद दया आ गई थी रधिया पर । तभी आसमान में एक तारा टूटकर कहीं ओझल हो गया था । इतने में हरिया के हाथ एक हथौड़ी लग गई थी । वह भी रधिया को मारते पीटते थक चुका था । रधिया पर हाथ चला चलाकर कब तक अपने हाथ तोड़ता वह ? उसके हाथों को भी तो मुक्ति चाहिए थी । उसने भी निश्चय कर लिया था कि वह आज अपने हाथों को मुक्त कर देगा । उसने हथौड़ी का एक भरपूर वार रधिया के सिर पर किया । एक हल्की सी चीख के साथ रधिया हमेशा हमेशा के लिए खामोश हो गई । ईश्वर ने दोनों की प्रार्थना सुन ली थी । ईश्वर ने रधिया को उसके पति के हाथों ही मुक्ति दे दी थी और हरिया के हाथ भी अब मुक्त हो गये थे । अब उन्हें कष्ट उठाने की जरूरत नहीं थी । अब कुछ बचा ही नहीं था जिस पर हाथ उठाया जाता । अब तो ये हाथ जेल में चक्की पीसने के काम ही आने वाले थे । हरिया का नशा रधिया की लाश देखकर काफूर हो चुका था । 

श्री हरि 
15.1.2023


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8 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:54 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2023 08:09 PM

बहुत बहुत आभार मैम

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Varsha_Upadhyay

16-Jan-2023 08:35 PM

बेहतरीन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jan-2023 11:29 PM

धन्यवाद जी

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Naresh Sharma "Pachauri"

15-Jan-2023 07:22 PM

लाजबाब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

15-Jan-2023 11:27 PM

बहुत बहुत आभार आदरणीय 💐💐🙏🙏

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